प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर भारत के अप्रत्यक्ष कर सुधार यानी GST (Goods and Services Tax) को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिनते हैं। 2017 में लागू हुए इस टैक्स सिस्टम ने राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर लगने वाले अलग-अलग टैक्स की जगह एक संयुक्त टैक्स देने का दावा किया था। अर्थशास्त्रियों का मानना था कि इससे सरकारी राजस्व बढ़ेगा और कारोबारियों के लिए काम आसान होगा।
लेकिन आठ साल बाद हकीकत कुछ और ही है — GST उम्मीदों पर पूरी तरह खरा नहीं उतर पाया। हाल ही में सरकार ने ऐलान किया कि गृह मंत्री और मोदी के सबसे भरोसेमंद सहयोगी अमित शाह को इसे सुधारने की जिम्मेदारी दी जाएगी।
अच्छा और बुरा दोनों पहलू
अच्छी खबर यह है कि मोदी मान रहे हैं कि GST में सुधार की जरूरत है। पॉपुलिस्ट नेताओं के लिए यह मानना आसान नहीं होता कि उनकी बनाई कोई व्यवस्था कमजोर भी हो सकती है।
दिलचस्प बात यह है कि शाह, जिन्हें मुश्किल राजनीतिक मामलों को सुलझाने का मास्टर माना जाता है, अब आर्थिक सुधार के इस बड़े काम में लगेंगे। हालांकि उन्होंने कभी आर्थिक मंत्रालय नहीं संभाला, लेकिन काम पूरा कराने के लिए उनकी सख्त छवि और राजनीतिक ताकत मशहूर है। उदाहरण के लिए, सालों तक सरकार Air India का निजीकरण नहीं कर पाई थी, लेकिन शाह के दखल के बाद यह काम हो गया।
बुरी खबर यह है कि GST सुधार को राजनीति से ज्यादा अर्थशास्त्र की जरूरत है। असल में, शुरुआत में ही राजनीतिक समझौतों ने इस सिस्टम को कमजोर बना दिया था।
कैसे बिगड़ा ‘गुड एंड सिंपल टैक्स’ का सपना
अर्थशास्त्री चाहते थे कि देशभर के सारे अप्रत्यक्ष करों की जगह एक राष्ट्रीय वैल्यू-ऐडेड टैक्स लगे, जो सभी सामान और सेवाओं पर लागू हो और एक ही विभाग द्वारा संभाला जाए। लेकिन संविधान के मुताबिक राज्यों को अप्रत्यक्ष कर लगाने का अधिकार है, न कि केंद्र को।
इसलिए केंद्र सरकार को राज्यों को साथ लेने के लिए समझौते करने पड़े। नतीजा — देश में एक नहीं बल्कि तीन GST लागू हो गए: एक केंद्र का, एक राज्यों का और एक अंतर-राज्यीय लेन-देन के लिए। इन तीनों के अलग अधिकारी, अलग फॉर्म और अलग नियम हैं।
ऊपर से, एक सिंगल टैक्स रेट के बजाय GST में चार-पांच से ज्यादा स्लैब आ गए। पेट्रोल-डीजल, शराब और बिजली जैसी बड़ी चीजें इसके दायरे से बाहर रखी गईं।
परिणाम? सरकार को उम्मीद के मुताबिक टैक्स नहीं मिला। GST लागू होने के बाद GDP के मुकाबले अप्रत्यक्ष कर संग्रह 6% तक पहुंचने में सरकार को पिछले साल तक इंतजार करना पड़ा।
कारोबारियों के लिए फायदे और नुकसान
एक तरफ, निर्यातकों को टैक्स रिफंड जल्दी मिलने जैसे फायदे हुए, लेकिन दूसरी तरफ GST धोखाधड़ी के मामले तेजी से बढ़े।
लगभग 10% टैक्स फर्जी रिफंड में चला जाता है। कई कारोबारी नकली इनवॉइस जमा करते हैं या काल्पनिक कंपनियों के नाम पर करोड़ों के लेन-देन दिखाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट ले लेते हैं। एक मामले में तो 246 फर्जी कंपनियां रजिस्टर की गईं।
स्लैब की गड़बड़ियां भी काम आसान नहीं होने देतीं। जैसे, पॉपकॉर्न पर 5% टैक्स है, लेकिन अगर पैक होकर बिके तो 12% — और अगर कैरामल फ्लेवर हो तो 18%! मोदी के एक पूर्व आर्थिक सलाहकार ने इसे “राष्ट्रीय त्रासदी” बताया था।
छोटे और बड़े कारोबार दोनों परेशान
कमजोर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और जटिल नियम छोटे कारोबारियों के लिए खास तौर पर मुश्किल हैं। विपक्ष का दावा है कि GST ने कई छोटे कारोबार बंद करा दिए।
बड़ी कंपनियां भी बच नहीं पाईं — Infosys और कुछ विदेशी एयरलाइंस को अरबों के टैक्स नोटिस मिले, जो बाद में वापस लिए गए।
अब क्या होना चाहिए?
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि GST को सरल बनाकर एक या दो टैक्स स्लैब खत्म करने चाहिए। आदर्श स्थिति में पेट्रोलियम जैसे अपवाद खत्म हों और सभी लेन-देन पर एक ही दर से टैक्स लगे, एक ही फॉर्म भरा जाए।
अगर अमित शाह ने अर्थशास्त्रियों की सुनी, तो यह संभव है। लेकिन खतरा यह है कि वे राजनीति की सुनेंगे, और फिर GST का असली सुधार शायद फिर टल जाएगा।
FAQs
GST को लेकर सरकार सुधार की जरूरत क्यों महसूस कर रही है?
GST लागू होने के 8 साल बाद भी यह सिस्टम पूरी तरह उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है। सरकार को अनुमानित टैक्स रेवेन्यू नहीं मिला, स्लैब और नियम बहुत जटिल हो गए, और फर्जीवाड़े के मामले बढ़ गए। इन वजहों से अब इसमें बड़े बदलाव की मांग हो रही है।
अमित शाह को GST सुधार की कमान क्यों दी गई है?
अमित शाह को मुश्किल और संवेदनशील मामलों को हल करने में माहिर माना जाता है। Air India के निजीकरण जैसे बड़े फैसलों में उनकी सीधी भागीदारी से काम पूरा हुआ। सरकार चाहती है कि वे अपनी राजनीतिक ताकत और रणनीति से GST सुधार को अंजाम दें।
मौजूदा GST सिस्टम में सबसे बड़ी समस्याएं क्या हैं?
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि एक GST के बजाय तीन अलग-अलग GST लागू हैं, कई स्लैब हैं, और पेट्रोल-डीजल, शराब जैसी चीजें इसके दायरे से बाहर हैं। इसके अलावा, फर्जी इनवॉइस और टैक्स चोरी के मामलों ने भी सिस्टम को कमजोर किया है।
GST सुधार से आम लोगों और कारोबारियों को क्या फायदा होगा?
अगर GST को सरल बनाकर एक या दो स्लैब में लाया जाता है और अपवाद कम किए जाते हैं, तो टैक्स प्रक्रिया आसान होगी। छोटे कारोबारियों को कम पेपरवर्क करना पड़ेगा, धोखाधड़ी की संभावना घटेगी और सरकार को ज्यादा रेवेन्यू मिलेगा, जिसका फायदा विकास परियोजनाओं में होगा।
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